दोहे
दोहा हिन्दी, उर्दू शायरी की मुमताज़ और मक़बूल सिन्फ़ सुख़न है। दोहा हिन्दी शायरी की सिन्फ़ है जो अब उर्दू में भी एक शे'री रिवायत के तौर पर मुस्तहकम हो चुकी है। इस का आग़ाज़ सातवीं सदी और आठवीं सदी का ज़माना बताया जाता है। दोहरा और दो पद उस के दूसरे नाम हैं।
ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया के चहेते मुरीद और फ़ारसी-ओ-उर्दू के पसंदीदा सूफ़ी शाइ’र, माहिर-ए-मौसीक़ी, उन्हें तूती-ए-हिंद भी कहा जाता है
चौदहवीं सदी हिज्री के मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र और ख़ानक़ाह-ए-रशीदिया जौनपूर के सज्जादा-नशीं
हाजी वारिस अ’ली शाह के चहेते मुरीद जिन्हों ने पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म पर जंगल में ज़िंदगी गुज़ारी
पंजाब के मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र जिनके अशआ’र से आज भी एक ख़ास रंग पैदा होता है और रूह को तस्कीन मिलती है
बर्र-ए-सग़ीर के मशहूर सूफ़ी और मक्तूबात-ए-सदी-ओ-दो सदी के मुसन्निफ़